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Chandrayaan-3 का पृथ्वी की कक्षा में लॉन्च सफल, 22 दिन तक पृथ्वी के ऑर्बिट पर रहेगा, 40 दिन बाद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा, कैसे पूरा करेगा 3.84 लाख किमी का सफर,
chandrayaan-3: चंद्रयान-3 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के स्पेस सेंटर से शुक्रवार दोपहर 2.35 बजे लॉन्च किया गया
फ़्रांस दौरे पर गए पीएम मोदी ने चंद्रयान-3 लॉन्च की बधाई देते हुए ट्वीट किया. पीएम मोदी ने कहा, “चंद्रयान-3 ने भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक शानदार चैप्टर की शुरुआत की है.”
पीएम मोदी ने कहा, “यह भारत के हर व्यक्ति के सपनों और महत्वाकांक्षाओं को ऊपर ले जाते हुए ऊंचाइयों को छू रहा है. यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हमारे वैज्ञानिकों के अथक समर्पण का प्रमाण है. मैं उनके उत्साह और प्रतिभा को सलाम करता हूँ.”
चंद्रयान के रोवर और लैंडर के नाम में कोई बदलाव नहीं किया गया है। चंद्रयान-3 के लैंडर का नाम ‘विक्रम’ और रोवर का नाम ‘प्रज्ञान’ ही रहेगा।
इसरो प्रमुख सोमनाथ ने कहा, “चंद्रयान-3 ने चांद की अपनी यात्रा शुरू कर दी है. चंद्रयान-3 को शुभकामनाएं दें कि आने वाले दिनों में वो चांद पर पहुंचे. एएलवीएम3-एम4 रॉकेट ने चंद्रयान 3 को सटीक कक्षा में पहुंचा दिया है.”
इसरो ने बताया है कि चंद्रयान-3 की गतिविधि पूरी तरह से सामान्य है और वो उसे चांद की सतह पर देखने की प्रतीक्षा में हैं.
चंद्रयान-3 तीन में एक लैंडर, एक रोवर और एक प्रॉपल्सन मॉड्यूल लगा हुआ है. इसका कुल भार 3,900 किलोग्राम है.
शुक्रवार को लॉन्चिंग के बाद चंद्रयान-3 खुद को धीरे-धीरे पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकालेगा। फिर तेजी से चांद की ओर बढ़ेगा। चंद्रयान-3 को चांद तक पहुंचने में 40 दिन लगेंगे। चांद के पास पहुंचकर यह उसके गुरुत्वाकर्षण बल के हिसाब से एडजस्ट करेगा। वृत्तीय कक्षा को घटाकर 100×100 किलोमीटर तक लाने के बाद चंद्रयान-3 का रोवर प्रपल्शन मॉड्यूल से अलग हो जाएगा और सतह की ओर बढ़ना शुरू करेगा। रोवर के भीतर ही लैंडर मौजूद है।
615 करोड़ रुपये की लागत वाले चंद्रयान-3 मिशन का लक्ष्य वही है जो पिछले प्रोजेक्ट्स का था। चांद की सतह के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाना। चंद्रयान-3 के लैंडर पर चार तरह के साइंटिफिक पेलोड जाएंगे। ये चांद पर आने वाले भूकंपों, सतह की थर्मल प्रॉपर्टीज, सतह के करीब प्लाज्मा में बदलाव और चांद और धरती के बीच की सटीक दूरी मापने की कोशिश करेंगे। चांद की सतह के रासायनिक और खनिज संरचना की भी स्टडी होगी।
chandrayaan-3 के लॉन्च को देखने के लिए कई स्कूलों के क़रीब 200 स्टूडेंट्स स्पेस सेंटर पर पहुंचे थे. इस दौरान हज़ारों लोग स्पेस सेंटर पर मौजूद दिखे.
चंद्रयान-3 पांच अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करेगा.
पीएम मोदी ने चंद्रयान-3 के लॉन्च से पहले ट्वीट कर कहा था- ”भारत के स्पेस सेक्टर के क्षेत्र में 14 जुलाई 2023 की तारीख़ सुनहरे अक्षरों में लिखी जाएगी.”
इस मिशन में चंद्रयान का एक रोवर निकलेगा जो चांद की सतह पर उतरेगा और लूनर साउथ पोल में इसकी पोजिशनिंग होगी.
Chandrayaan-3 की लॉन्चिंग सफल
चंद्रयान-3 की ने अपनी लॉन्चिंग के चार चरण सफलता पूर्वक पूरे कर लिए हैं.
इसरो के मुताबिक चंद्रयान-3 पृथ्वी की निर्धारित कक्षा में पहुंच गया है जहां से वो चांद की कक्षा की ओर प्रस्थान करेगा.
इसरो प्रमुख सोमनाथ ने कहा, ”चंद्रयान-3 ने चांद की अपनी यात्रा शुरू कर दी है.
चंद्रयान-3 को शुभकामनाएं दें कि आने वाले दिनों में वो चांद पर पहुंचे.”
सोमनाथ ने कहा, ”एएलवीएम3-एम4 रॉकेट ने चंद्रयान 3 को सटीक कक्षा में पहुंचा दिया है.”
इसरो ने बताया है कि चंद्रयान-3 की गतिविधि पूरी तरह से सामान्य है और वो उसे चांद की सतह पर देखने की प्रतीक्षा में हैं.
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इसरो के चंद्रयान-3 मिशन की चुनौतियां क्या हैं?
अनजान सतह पर लैंड करना बड़ी चुनौती है। यह एक ऑटोनॉमस प्रक्रिया है जिसके लिए कोई कमांड नहीं दी जाती। लैंडिंग किस तरह होगी, यह ऑन-बोर्ड कंप्यूटर तय करता है। अपने सेंसर्स के हिसाब से लोकेशन, हाइट, वेलोसिटी वगैरह का अंदाजा लगाकर कंप्यूटर फैसला लेता है। चंद्रयान-3 की सॉफ्ट-लैंडिंग सटीक और सही होने के लिए कई तरह के सेंसर्स का एक साथ ठीक काम करना जरूरी है।
इसरो के चंद्रयान मिशन की टाइमलाइन
- 15 अगस्त 2003 : तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चंद्रयान कार्यक्रम की घोषणा की।
- 22 अक्टूबर 2008 : चंद्रयान-1 ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी।
- आठ नवंबर 2008 : चंद्रयान-1 ने प्रक्षेपवक्र पर स्थापित होने के लिए चंद्र स्थानांतरण परिपथ (लुनर ट्रांसफर ट्रेजेक्ट्री) में प्रवेश किया।
- 14 नवंबर 2008 : चंद्रयान-1 चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव के समीप दुर्घटनाग्रस्त हो गया लेकिन उसने चांद की सतह पर पानी के अणुओं की मौजूदगी की पुष्टि की।
- 28 अगस्त 2009 : इसरो के अनुसार चंद्रयान-1 कार्यक्रम की समाप्ति हुई।
- 22 जुलाई 2019 : श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण किया गया।
- 20 अगस्त 2019 : चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया।
- दो सितंबर 2019 : चंद्रमा की ध्रुवीय कक्षा में चांद का चक्कर लगाते वक्त लैंडर ‘विक्रम’ अलग हो गया था लेकिन चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर लैंडर का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया।
- 14 जुलाई 2023 : चंद्रयान-3 श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में दूसरे लॉन्चपैड से उड़ान भरेगा।
- 23/24 अगस्त 2023 : इसरो के वैज्ञानिकों ने 23-24 अगस्त को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की योजना बनायी है जिससे भारत इस उपलब्धि को हासिल करने वाले देशों की फेहरिस्त में शामिल हो जाएगा।
LVM3 रॉकेट से Chandrayaan-3 को किया जाएगा लॉन्च
इसरो 14 जुलाई, 2023 को दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से चंद्रयान 3 लॉन्च करने जा रहा है। चंद्रयान 3 मिशन के अंतर्गत इसका रोबोटिक उपकरण 24 अगस्त तक चांद के उस हिस्से (शेकलटन क्रेटर) पर उतर सकता है जहां अभी तक किसी भी देश का कोई अभियान नहीं पहुंचा है। इसी वजह से पूरी दुनिया की निगाहें भारत के इस मिशन पर हैं। पहले के मुकाबले इस बार चंद्रयान 3 का लैंडर ज्यादा मजबूत पहियों के साथ 40 गुना बड़ी जगह पर लैंड होगा। चंद्रयान 3 को LVM3 रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा। लैंडर को सफलतापूर्वक चांद की सतह पर उतारने के लिए इसमें कई तरह के सुरक्षा उपकरणों को लगाया गया है। चंद्रयान 3 मिशन की थीम Science Of The Moon यानी चंद्रमा का विज्ञान है।
शेकलटन क्रेटर
चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव 4.2 किलोमीटर वाला एक बड़ा शेकलटन क्रेटर (Shackleton Crater) है। इस खास जगह पर अरबों सालों से सूर्य की रोशनी नहीं पहुंची है। इस वजह से यहां का तापमान -267 डिग्री फारेनहाइट रहता है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस जगह पर हाइड्रोजन की मात्रा काफी ज्यादा है। इस कारण यहां पर पानी की मौजूदगी हो सकती है। कई वैज्ञानिकों द्वारा यह अनुमान लगाया जा रहा है कि Shackleton Crater के पास 100 मिलियन टन क्रिस्टलाइज पानी मिल सकता है।
कई जरूरी संसाधनों का भंडार है शेकलटन क्रेटर
इसके अलावा यहां पर अमोनिया, मिथेन, सोडियम, मरकरी और सिल्वर जैसे जरूरी संसाधन मिल सकते हैं। चंद्रयान 3 मिशन के अंतर्गत रोवर के माध्यम से इन्हीं जगहों को एक्सप्लोर किया जाएगा। रोवर की मदद से चांद की सतह की मिट्टी, वहां का तापमान और वातावरण में मौजूद गैसों के बारे में पता लगाया जाएगा। इसके अलावा चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की संरचना और वहां का भूविज्ञान कैसा है? इन तथ्यों के बारे में भी जाना जाएगा।
नासा के आर्टेमिस 3 मिशन के लिए कितना महत्वपूर्ण है चंद्रयान 3
Chandrayaan-3 नासा के आर्टेमिस-3 मिशन के लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाला है। अर्टेमिस 3 मिशन के अंतर्गत नासा चांद के दक्षिणी ध्रुव पर इंसानों को उतारने की योजना बना रहा है। ऐसे में चंद्रयान 3 की खोज से चांद के साउथ पोल के बारे में जो डाटा मिलेगा। उससे नासा के आर्टेमिस मिशन को चांद के इस खास क्षेत्र के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेंगी।
ग्लोबल स्पेस रेस में भारत की धमक को करेगा मजबूत
Chandrayaan-3 मिशन इंसानी जिज्ञासा का प्रतीक और बदलते भारत की तस्वीर को बयां करेगा। यही नहीं चंद्रयान 3 ग्लोबल स्पेस रेस में भारत की धमक को मजबूती देगा।
Chandrayaan-3 के चंद्रमा पर पहुंचने की संभावित तिथि 23 अगस्त है. इस बार मून मिशन के साथ ऑर्बिटर नहीं भेजा जा रहा है. केवल लैंडर और रोवर ही इसमें होंगे.
40 दिनों की यात्रा पूरी करने के बाद चंद्रयान-3 का रोवर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा.
पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी 3.84 लाख किलोमीटर है. चंद्रयान-3 के चंद्रमा पर पहुंचने की संभावित तिथि 23 अगस्त है. यानि चंद्रयान-3 को चांद की यात्रा पूरी करने में 40 दिनों का समय लगेगा. इस मिशन का पहला टारगेट चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग है. ये मिशन का सबसे जटिल हिस्सा भी है. दूसरा टारगेट रोवर का चंद्रमा की सतह पर चहलकदमी करना और तीसरा लक्ष्य रोवर से जुटाई जानकारी के आधार पर चंद्रमा के रहस्यों से परदा उठाना है.
ऑर्बिटर नहीं होगा साथ
Chandrayaan-3 के जरिए इसरो का ये लक्ष्य एलवीएम3एम4 रॉकेट की सफल अंतरिक्ष यात्रा के साथ पूरा होगा. ये बाहुबली रॉकेट चंद्रयान-3 को लेकर अंतरिक्ष में लेकर जाएगा. इसके साथ लैंडर और रोवर मौजूद होंगे. इस बार चंद्रयान के साथ ऑर्बिटर नहीं भेजा जा रहा है, क्योंकि चंद्रयान-2 के साथ भेजा गया ऑर्बिटर अभी भी वहां काम कर रहा है.
36,968 किमी प्रति घंटे तक होगी रॉकेट की रफ्तार
दोपहर 2.35 बजे जब रॉकेट बूस्टर को लॉन्च किया जाएगा तो इसकी शुरुआती रफ्तार 1627 किमी प्रति घंटा होगी. लॉन्च के 108 सेकंड बाद 45 किमी की ऊंचाई पर इसका लिक्विड इंजन स्टार्ट होगा और रॉकेट की रफ्तार 6437 किमी प्रति घंटा हो जाएगी. आसमान में 62 किमी की ऊंचाई पर पहुंचने पर दोनों बूस्टर रॉकेट से अलग हो जाएंगे और रॉकेट की रफ्तार 7 हजार किमी प्रति घंटा पहुंच जाएगी.
इसके बाद करीब 92 किमी की ऊंचाई पर चंद्रयान-3 को वायुमंडर से बचाने वाली हीट शील्ड अलग होगी. 115 किमी की दूरी पर इसका लिक्विड इंजन भी अलग हो जाएगा और क्रॉयोजनिक इंजन काम करना शुरू कर देगा. रफ्तार 16 हजार किमी/घंटा होगी. क्रॉयोजनिक इंजन इसे लेकर 179 किमी तक जाएगा और इसकी रफ्तार 36968 किमी/घंटे पहुंच चुकी होगी.
पृथ्वी से चांद की कक्षा का सफर
क्रॉयोजनिक इंजन चंद्रयान-3 को पृथ्वी के बाहरी ऑर्बिट में स्थापित करेगा. इसके बाद इसके सौर पैनर खुलेंगे और चंद्रयान पृथ्वी के चक्कर लगाना शुरू कर देगा. धीरे-धीरे चांद अपनी कक्षा को बढ़ाएगा और चांद की कक्षा में प्रवेश करेगा. चंद्रमा के 100 किमी की कक्षा में आने के बाद लैंडर को प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग किया जाएगा और इसके बाद लैंडर की चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग होगी.
लैंडर के सफलतापूर्वक लैंड होने के बाद रोवर इसमें से बाहर आएगा और चंद्रमा की सतह पर चलेगा. यहां ये जानना जरूरी है कि इसके पूर्व में भेजे गए मून मिशन चंद्रयान-2 के लैंडर ने चंद्रमा की सतह से 2 किमी पहले ही अपना संपर्क खो दिया था.
Chandrayaan-3 Related FAQ
Qus: चंद्रयान-3 क्या है?
Ans: चंद्रयान-3 एक भारतीय अंतरिक्ष मिशन है जो चंद्र के सतह पर वैज्ञानिक अध्ययन करने के लिए योजित किया गया है।
Qus: चंद्रयान-3 मिशन का उद्देश्य क्या है?
Ans: चंद्रयान-3 मिशन का मुख्य उद्देश्य चंद्र की सतह पर वैज्ञानिक और तकनीकी अध्ययन करना है। इसके लिए एक रोवर भी भेजा जाएगा, जो विज्ञानिक अध्ययन के लिए मापेगा और डेटा एकत्र करेगा।
Qus: चंद्रयान-3 कब लॉन्च हुआ ?
Ans: चंद्रयान-3 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के स्पेस सेंटर से शुक्रवार 14 जुलाई 2024, दोपहर 2.35 बजे लॉन्च किया गया।
Qus: चंद्रयान-3 में कौन-कौन से उपकरण होंगे?
Ans: चंद्रयान-3 में एक रोवर और एक लैंडर शामिल होंगे। रोवर चंद्र के सतह पर गतिविधियों को मापेगा और वैज्ञानिक डेटा एकत्र करेगा, जबकि लैंडर उन्हें चंद्र पर सुरक्षित रूप से उतारेगा।
Qus: चंद्रयान-3 मिशन का महत्व क्या है?
Ans: चंद्रयान-3 मिशन से भारत अपने अंतरिक्ष अनुसंधान क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाएगा। इसके माध्यम से भारतीय वैज्ञानिक क्षमता और तकनीकी मानकों में सुधार होगा। इसके अलावा, इस मिशन से चंद्र की सतह के बारे में नई जानकारी प्राप्त होगी और अंतरिक्ष अनुसंधान में एक नया पथ प्रशस्त किया जा सकेगा।