गीता फोगाट का जीवन परिचय। | Geeta Phogat Biography in Hindi

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१. परिचय: गीता फोगाट

गीता फोगाट को भारत की पहली महिला पहलवान के रूप में जाना जाता है। उनका जन्म 15 दिसंबर, 1988 को हरियाणा के बालाली गांव में हुआ था। उनके परिवार में पहलवानी का बहुत लंबा इतिहास है और उनके पिता महावीर सिंह फोगाट भी एक पहलवान हैं। उनके छह भाई भी पहलवान हैं और इनमें से दोनों भाई उनके साथ इंटरनेशनल कुश्ती में भाग लेते हैं। उनकी मां दया कौर भी एक पहलवानी थी।

गीता फोगाट ने बचपन से ही कुश्ती के प्रति रुचि रखी थी और उन्होंने इस में अपने भाइयों के साथ दिन-रात मेहनत की। उन्होंने दूसरों की तुलना में कुश्ती में ज्यादा समय व्यतीत करते हुए खुद को उसमें माहिर बनाया। वे अपनी पहली बड़ी जीत 2003 में प्राप्त कर चुकी हैं जब वे नेशनल स्कूल गेम्स में स्वर्ण पदक जीती थीं।

जन्म और परिवार के बारे में जानकारी

गीता फोगाट का जन्म उनके परिवार के लिए एक बड़ा उत्सव था। उनके पिता महावीर सिंह फोगाट एक पहलवान थे जो अपनी पहली पुत्री को एक पहलवान के रूप में पालने का इरादा रखते थे। वे अपनी बेटी को कुश्ती की तरफ आकर्षित करते थे और उन्हें अपने साथ मिलकर तैयारी कराते थे।

गीता के परिवार में इतनी पहलवानी होने के बावजूद, लड़कियों को संबंधित खेलों में खेलने की अनुमति नहीं थी। इसलिए, गीता के परिवार ने उन्हें स्कूल में डाला जहाँ उन्हें कुश्ती के अलावा अन्य शैलियों में भी रूचि थी।

परिवार की आर्थिक स्थिति भी काफी दुर्भाग्यपूर्ण थी। इसलिए, गीता अपनी तैयारी के लिए दिन-रात मेहनत करती थीं और जितना समय उनके पास था, उसका पूरा इस्तेमाल व्यायाम और तैयारी में करती थीं। अपनी मां से जुड़ी गीता ने कहा कि वे अपने पिता के लिए जीतती थीं ताकि उन्हें अपनी पहलवानी के सपनों को पूरा करने में सहायता मिल सके।

पहलवान परिवार में बचपन से ही कुश्ती के प्रति रुचि

गीता फोगाट का परिवार एक पहलवान परिवार था। उनके पिता महावीर सिंह फोगाट एक उत्तम पहलवान थे और उनके घर में हमेशा से कुश्ती का माहौल रहता था। इसलिए, गीता और उनके भाईयों की जिंदगी में कुश्ती एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है।

गीता को बचपन से ही कुश्ती के प्रति रुचि थी। वे अपने पिता के साथ खेलती थीं और उनकी तैयारी में मदद करती थीं। गीता के परिवार ने उन्हें स्कूल नहीं भेजा था और इसके बदले में उन्हें घर पर ही शिक्षा दी गई थी। इस तरह से, गीता अपनी पहली कुश्ती में सफल हुई थीं जब वे केवल 8 साल की थीं।

गीता की पहली कुश्ती से बढ़ती उनकी उत्साह और रूचि ने उन्हें अन्य खेलों में भी रुचि जगाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने हॉकी, वॉलीबॉल और बास्केटबॉल जैसे अन्य खेलों में भी खेला, लेकिन कुश्ती हमेशा उनका पहला पसंद रहा।

२. सफलता की कहानी

गीता फोगाट की सफलता की कहानी एक बेहद प्रेरणादायक कहानी है। उन्होंने अपने परिवार की उम्मीदों पर खरा उतरा और दुनिया को दिखाया कि महिलाएं भी पहलवान हो सकती हैं।

जब गीता फोगाट ने कुश्ती में अपनी पहली बड़ी सफलता हासिल की तो उन्होंने खुशी के मारे अपने पिता के गले लग गिरे। उन्होंने अपनी गलतियों से सीखा और अधिक मेहनत करना शुरू किया।

गीता ने हमेशा अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ता से काम किया और अपने परिश्रम का फल उन्हें महान सफलता तक पहुंचाया। उन्होंने अपने देश के लिए दो स्वर्ण पदक जीते और दुनिया के सबसे बड़े खेलों में अपना नाम रोशन किया।

गीता फोगाट की सफलता की कहानी हमें यह सिखाती है कि कोई भी लक्ष्य हासिल कर सकता है अगर उसमें जीत की ज़िद हो, दृढ़ता हो और निरंतर प्रयास करते रहने की शक्ति हो।

अपनी पहली बड़ी जीत की कहानी

गीता फोगाट की पहली बड़ी जीत की कहानी एक नाटक की तरह है। उन्होंने उस दिन अपनी पूरी ताकत लगाई थी जब उन्हें पता चला कि उन्हें हराने वाली खिलाड़ी उसी दिन उनसे मुकाबला करेगी। इसे सुनते ही उन्हें अपने जीत के लिए उत्साह मिल गया।

गीता ने सोचा कि यदि वह अपने खेल में सबकुछ लगा देती है, तो उसे जीत मिलेगी। उन्होंने खुद को इस विश्वास के साथ लगाया कि वह जीत सकती है।

उन्होंने जीत के लिए जोरदार प्रयास किए और अपने दोस्तों और परिवार का साथ लिया। उनका खेल देखते ही सब उन्हें शाबाशी देने लगे।

जब गीता ने अपनी जीत हासिल की, तो उनके मन में अनेक भाव उमड़ आए। उन्हें खुशी के मारे अपनी मां के गले लग गिरने का मन हुआ। उन्होंने अपने परिवार और दोस्तों के साथ ये सफलता मनाई और सबसे अधिक खुश थीं उनकी मां, जिन्होंने उन्हें सदैव प्रेरित किया। गीता फोगाट की पहली बड़ी जीत की कहानी हमें यह सिखाती है कि

हमेशा अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखना चाहिए और जीत के लिए हमेशा जोरदार प्रयास करना चाहिए। जब हम जीतते हैं, तो हमें खुशी की लहर महसूस होती है जो हमें आगे बढ़ने की ताकत देती है।

गीता फोगाट के लिए उनकी पहली जीत ने उन्हें नया जीवन दिया। उन्हें उनकी खुशी के बारे में व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे। उनकी पहली जीत ने उन्हें यह सबक सिखाया कि अगर हम सही दिशा में जाएँ और जीत के लिए पूरी ताकत लगाएँ तो हम सफल हो सकते हैं।

गीता फोगाट की पहली बड़ी जीत की कहानी हमें एक अच्छी सीख देती है कि अगर हम अपने सपनों के पीछे भागते हैं और जीत के लिए तैयार रहते हैं, तो हम जरूर सफल होंगे।

कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने का अनुभव

जब गीता फोगाट को कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक मिला, तब उन्हें अपने अंदर के सभी भाव एक साथ महसूस हुए। वे खुशी, उत्साह, गर्व और अनुभवों से भरे थे। गीता का सपना था कि वह एक दिन विश्व स्तर पर महिला पहलवान बनेगी और उन्होंने अपने सपनों की पूर्ति के लिए काफी मेहनत की थी। जब उन्होंने अपने सपनों को साकार किया, तो उन्हें अपनी कमजोरियों से लड़ने का और अधिक जोश मिला।

उन्होंने कहा था कि जब उन्होंने स्टेज पर देश के झंडे के सामने खड़े होकर अपनी सफलता की घोषणा सुनाई तो उन्हें एक अलग ही ऊँचाई का एहसास हुआ था। उन्हें लगता था कि उन्होंने देश के लिए कुछ बड़ा कर दिया है और उन्हें यह सब सिर्फ इसलिए मिला था क्योंकि उन्होंने सही दिशा में कड़ी मेहनत की थी। उन्हें अपनी सफलता से सिर्फ एक अहसास नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने एक देशभक्त के रूप में भी अपने आप को महसूस करने का मौका पाया।

२०१० कमनवेल्थ गेम्स में अपनी देश को पहली गोल्ड मेडल दिलाने की कहानी

२०१० कमनवेल्थ गेम्स में जब गीता फोगाट ने अपनी देश को पहली गोल्ड मेडल दिलाया तो उन्हें बेशक अपने जीवन की सबसे बड़ी सफलता मिली थी। उन्होंने अपने सपनों को साकार करने में बड़ी मेहनत की थी। वे नहीं थकती थीं और न ही रुकती थीं। वे जब तक अपना लक्ष्य पूरा नहीं करतीं थीं, तब तक वे खुद को आराम नहीं देतीं थीं।

उन्होंने कहा था कि उन्हें सफलता के लिए केवल अपनी मेहनत, लगन और लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता थी। जब उन्होंने इस सोच को अपने जीवन का मूलमंत्र बनाया तो उन्हें सफलता मिलना सुनिश्चित हो गया था। उन्होंने सफलता के मैदान में बहुत संघर्ष किया था और जब उन्हें उसका फल मिला, तो उन्हें अपनी खुशी से रोक नहीं पाई गई। उन्हें लगा कि उन्होंने अपने देश के लिए कुछ बड़ा कर दिया है और उन्हें यह सब सिर्फ इसलिए मिला था क्योंकि उन्होंने सही दिशा में कड़ी मेहनत की थी।

२०१२ ओलंपिक में खिताब जीतने का अनुभव

गीता फोगाट के जीवन का सबसे बड़ा मोमेंट २०१२ लंदन ओलंपिक था। वह पहली भारतीय महिला पहलवान बनने वाली खिलाड़ी थीं, जिन्होंने ओलंपिक में अपने देश के लिए खेला। उन्होंने खेल के पहले ही बता दिया था कि वह स्वर्ण पदक जीतेंगी।

उनकी शुरुआत अच्छी नहीं थी, क्योंकि उन्हें पहली मैच हार जानी थी। लेकिन वह निराश नहीं हुई और दूसरे मैच में वह अपनी ओर से एक धमाकेदार जीत हासिल कर लेती हैं। वह अगले दो मैच भी जीतती हैं और सेमीफाइनल में पहुंच जाती हैं।

सेमीफाइनल में वह जापान की सातो चहात खेलती हैं, जिसने उन्हें पहले से ही हरा दिया था। लेकिन इस बार गीता फोगाट ने उसे हराकर अपनी पहली ओलंपिक फाइनल जीती।

फाइनल में उन्होंने कनाडाई खिलाड़ी टोनी अलेक्सेंडर के साथ मुकाबला किया। यह मुकाबला बेहद ताकतवर था, लेकिन गीता ने अपने पहले मुकाबले की तरह ही संजीवनी दिखाई।

गीता फोगाट ने २०१२ लंदन ओलंपिक में भारत के लिए एक ऐतिहासिक खिताब जीता था। इस सफलता के बाद, उन्होंने देश को सम्मानित करने वाली कई पुरस्कारों से नवाजा, जिसमें स्पोर्ट्स अवार्ड, पद्मश्री और राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार शामिल हैं।

इस सफलता के बाद, उन्होंने देश में कुश्ती को और भी ज्यादा प्रचार देने के लिए एक अस्पताल के नाम पर अपनी जिंदगी की कुछ भागीदारी भी निभाई। उन्होंने कहा था कि उन्हें देश की सेवा करने का यह मौका मिला है, जो वह खुशी से स्वीकार करती हैं। उनकी जीत और उनकी कड़ी मेहनत ने देश को प्रेरित किया और कुश्ती खिलाड़ियों को एक नया मार्ग दिया।

अपनी कुश्ती रंगमंच पर करियर की कहानी

गीता फोगाट की कुश्ती की दुनिया में एक अलग ही पहचान है। वह एक बहुत ही सफल कुश्ती खिलाड़ी हैं और अपनी योग्यता के कारण वह दुनिया भर में पहचान बनाई हुई हैं।

उनका करियर रंगमंच पर शुरू हुआ था। उन्होंने बचपन से ही इस खेल का शौक रखा था और अपनी जिज्ञासा को पूरा करने के लिए पिता महावीर सिंह फोगाट के साथ मड़वाली गांव से नजदीकी शहर छोटा उद्योग गांव खेमरी में रहते हुए कुश्ती का अभ्यास करने लगी थी।

अपने मेहनत और लगन से वह नामी कुश्ती खिलाड़ी बनीं। उन्होंने कई देशी और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत का नाम रोशन किया है। उन्होंने अपने करियर में बहुत सारे उपलब्धियां हासिल की हैं।

उन्होंने दिल्ली कमनवेल्थ गेम्स, २०१० में स्वर्ण पदक जीता था। इसके बाद उन्होंने लंदन ओलंपिक, २०१२ में सोने का पदक जीता था।

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि गीता फोगाट कुश्ती में अपनी पूरी जानकारी और तकनीक को आगे बढ़ाते हुए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की मुकाबलों में भाग ले चुकी हैं। उनके बारे में सुनते ही सबके मन में एक ही सवाल होता है कि क्या उन्हें इस सफ़र में कभी कोई गिरावट आयी है? तो जवाब है हाँ, उन्हें कई बार ऐसे मैदानों पर मुकाबला करना पड़ा जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी बल्कि हर बार इन हारों से उन्होंने नई प्रेरणा ली और अपने कौशल को और भी सुधारने का एक मौका पाया।

गीता ने अपने कुश्ती करियर की शुरुआत २००१ में की थी और तब से लेकर आज तक उन्होंने अपनी जीतों और हारों के अनुभव से बहुत कुछ सीखा है। उन्होंने कहा है कि जब आप कुश्ती के मैदान में आते हैं, तो आपको अपने आप पर विश्वास होना चाहिए।

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३. जीवन के सफ़र का वर्णन

जीवन का सफ़र एक रोमांचक यात्रा है, जिसमें बड़े-बड़े चुनौतियों से लड़कर आगे बढ़ा जाता है। गीता फोगाट के जीवन के सफ़र में भी ऐसे अनेक चुनौतियों ने उन्हें परेशान किया है, लेकिन उन्होंने हर बार अपनी मेहनत और दृढ़ता से उन चुनौतियों को पार किया है।

गीता फोगाट का सफ़र बचपन से ही कुश्ती के दीवाने होने से शुरू हुआ। उन्होंने बचपन में ही इसे एक खेल नहीं, अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाया था। उन्होंने कुश्ती के दौरान जीते-हारे, टूटे-फूटे और ज़िन्दगी के हर पहलू से गुज़रा।

उनका सफ़र उनके परिवार के साथ रहते हुए आगे बढ़ता गया। उनके परिवार का सपना था कि उनकी बेटियां भी कुश्ती में उतनी ही महारत हासिल करें, जितनी कि उनके भाईयों ने करी थी। गीता फोगाट और उनकी बहन बाबिता फोगाट ने अपने परिवार के सपनों को साकार करते हुए अनेक महत्वपूर्ण खिताबों को अपने नाम किया हैं।

गीता फोगाट के बाल्यकाल का वर्णन

गीता फोगाट के बाल्यकाल की कहानी बहुत ही दिल को छूने वाली है। वह छोटी सी लड़की थी जब से उनके परिवार ने कुश्ती के प्रति रुचि जताने लगे थे। गीता ने अपनी छोटी उम्र में ही कुश्ती की दुनिया में कदम रखा था। वह अपने पिता महावीर सिंह फोगाट के निरंतर प्रयासों और प्रोत्साहन से बहुत प्रभावित थीं।

गीता का बचपन काफी अलग था। वह अपने भाइयों के साथ मिलकर शुरुआत से ही कुश्ती का प्रशिक्षण लेती थीं। वह रोजाना सुबह उठकर अपनी दौड़-दौड़ और दैनिक गतिविधियों के बीच कुश्ती का प्रशिक्षण लेती थीं। गीता का बचपन तो थोड़ा अलग ही था, लेकिन यही सोच ने उन्हें सफलता की ओर आगे बढ़ाया।

खेल में सफलता पाने के बाद उनके जीवन में बदलाव

जब गीता फोगाट ने अपने देश के लिए विश्व स्तर पर सफलता प्राप्त की, तो उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया। उन्होंने अपनी कुश्ती के जादू के माध्यम से न केवल स्वयं को बल्कि अपने परिवार को भी एक ऊंचाई प्रदान की। वे देश के युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गईं जिन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए सक्षम कर दिया।

गीता फोगाट के लिए खेल के बाद जीवन में एक नई शुरुआत हुई। वे न केवल अपने खेल को बल्कि अपने परिवार को भी समर्थ बनाने में सक्षम थीं। उन्होंने बच्चों के लिए खेल के क्षेत्र में एक नया पैरा खोला जिससे देश के अनेक युवाओं को संबल और आत्मविश्वास मिला। उनके जीवन में सफलता के बाद, वे एक सफल व्यवसायी, संघर्ष वाली माता और एक समाजसेवी बन गईं।

गीता फोगाट की कहानी बताती है कि सफलता न केवल एक खेल की जीत होती है बल्कि यह एक जीवन बदल देने वाला अनुभव भी होता है।

स्वामी विवेकानंद के उद्धरण के बारे में

स्वामी विवेकानंद एक महान आध्यात्मिक गुरु थे जिनकी वाणी आज भी हमारे जीवन में प्रेरणास्रोत के रूप में काम आती है। उन्होंने कहा था, “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाए।” यह उनका महान उद्धरण है जो हमें सकारात्मक सोचने और लक्ष्य की ओर प्रेरित करता है। उन्होंने भी कहा था, “एक अच्छा व्यक्तित्व उस व्यक्ति से ही बनता है जो कठिनाइयों में भी अपने लक्ष्य को हासिल करता है।” इससे हमें यह सीख मिलती है कि जीवन के हर मुश्किल से लड़ते हुए हमें हमेशा आगे बढ़ना चाहिए और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए।

४. संदेह और चुनौतियों से निपटने की कहानी

गीता फोगाट ने अपने जीवन में कई चुनौतियों और संदेहों का सामना किया है। उन्होंने कुश्ती खेलते हुए अपनी ताकत और दमको दुनिया को साबित किया है, लेकिन जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी वह निरंतर संघर्ष करती रही हैं।

उन्होंने खेल के मैदान से बाहर भी जीत हासिल करने का संकल्प लिया था। इसीलिए वह अपने जीवन में आगे बढ़ते हुए शैक्षिक योग्यता प्राप्त करने का संकल्प लेकर पढ़ाई की ओर ध्यान दिया। उन्होंने एक समय इतनी कुशलता से पढ़ाई की कुशलता के अंतर्गत उन्हें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स से बाहर कर दिया गया था। इसे लेकर उन्होंने बहुत दुखी होते हुए भी हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपनी मेहनत जारी रखते हुए अगले साल ही सेंटर ऑफ एक्सीलेंस से एडमिशन ले लिया।

कुश्ती में महिलाओं के लिए चुनौतियों का वर्णन

कुश्ती एक ऐसा खेल है जिसमें हर खिलाड़ी को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, और जब बात महिला कुश्ती की होती है तो चुनौतियां और भी कठिन हो जाती हैं। महिलाएं कुश्ती में पुरुषों के मुकाबले कम ताकतवर होती हैं, इसलिए उन्हें अपनी ताकत और क्षमता को दृष्टिगत रखते हुए अपनी टेक्निक को मजबूत बनाना होता है।

इसके साथ ही, महिलाओं को अक्सर समाज में कुश्ती करने की अनुमति नहीं दी जाती है इसलिए उन्हें उनकी खुशी के लिए खेलना होता है लेकिन फिर भी वे इस खेल में अपने दम पर आगे बढ़ती हैं। उन्हें ट्रेनिंग के दौरान भी सामना करना पड़ता है और दौरान से उन्हें चोटें आना भी काफी मामूली होता है।

फिर भी, गीता फोगाट जैसे खिलाड़ियों ने चुनौतियों का सामना करते हुए खेल में एक नया आयाम स्थापित किया है। उन्होंने दिखाया है कि कुश्ती में भी महिलाएं पुरुषों के साथ टक्कर दे सकती हैं और सफल हो सकती हैं।

संदेह और चुनौतियों का सामना करने का अनुभव

जीवन का हर क्षेत्र अपनी-अपनी चुनौतियों के साथ होता है। खेल में भी ऐसी ही चुनौतियां आती हैं जो हमें हमारी क्षमता का पता लगाने और अपनी सीमाओं को तोड़ने की दिशा में बढ़ने की जरूरत पड़ती है। मुझे भी कुश्ती में कई बार ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। पहले, कुश्ती में महिलाओं को लेकर लोगों में संदेह था कि क्या वे पुरुषों से मुकाबला कर सकती हैं या नहीं। लेकिन मैंने इस संदेह को तोड़ते हुए देश के लिए अपने पहलवान बहनों के साथ मिलकर खेला और सफलता हासिल की।

दूसरे, एक चुनौती यह थी कि मैं कुश्ती में शुरुआत में बहुत हारती थी। मेरी कुश्ती में वास्तव में बड़ी समस्या यह थी कि मैं अपने दिमाग में नकारात्मक सोच को नहीं हटा पा रही थी। लेकिन मेरे परिवार ने मुझे समझाया कि सक्षमता से अधिक अभिशाप सोचना गलत होता है।

विवाह के बाद कुश्ती में वापसी करने का फैसला लेने की कहानी

विवाह के बाद अक्सर लोग अपनी दूसरी प्राथमिकताओं के लिए खेल से दूर हो जाते हैं, लेकिन गीता फोगाट ने अपने सपनों और मिशन से कभी नहीं हटा। उन्होंने दोस्तों और परिवार से अनुमति लेकर खेल में वापसी की तैयारी की।

उन्होंने इस निर्णय से जुड़ी हर मुश्किल को झेला और दूसरों की राय से नहीं डरे। इस बारे में वे कहती हैं कि कुश्ती में अपने पहले जीत के बाद से लेकर आज तक खेल ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया है। इस तरह वे अपने सपनों को हासिल करने के लिए सभी चुनौतियों का सामना करती रहीं। और आज हम सब देखते हैं कि उनके परिश्रम, जुनून और संघर्ष ने उन्हें उनकी मंज़िल तक पहुँचा दिया है।

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५. समाज सेवा का अनुभव

जब समाज के लिए कुछ करने का मौका मिलता है, तो दिल में अनुभूति का जज्बा होता है। ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ था जब मुझे समाज सेवा के माध्यम से अपने समाज के लोगों की मदद करने का मौका मिला। अपनी बचपन से कुश्ती में रूचि थी, लेकिन जब मैंने देखा कि हमारे समाज में बहुत सी बाधाएं हैं जो लोगों को रोकती हैं कुश्ती की ओर आगे बढ़ने से, तो मैंने सोचा कि मैं इस समस्या का समाधान कैसे कर सकती हूं।

मैंने इससे जुड़े कुछ समुदायों के साथ मिलकर उनकी मदद करने का फैसला किया। हमने एक कुश्ती के टूर्नामेंट का आयोजन किया जिससे समाज में कुश्ती को बढ़ावा मिल सके और बच्चों को इसमें दिलचस्पी बढ़े। हमने उन्हें उपलब्धियों के लिए प्रोत्साहित किया और इस तरीके से उन्हें बाधाओं से निपटने की क्षमता दी।

इस सेवा के माध्यम से, मैंने न केवल लोगों की मदद की, बल्कि इससे मुझे अपनी कुश्ती विदेशों में भी खेलने का मौका मिला।

समाज सेवा के लिए गीता फोगाट की कुश्ती छोड़ने की कहानी

मेरे पास समाज सेवा के लिए अपनी कुश्ती छोड़ने का फैसला लेने का एक दिन आया। मैं नहीं जानती थी कि मेरा फैसला सही होगा या नहीं, लेकिन मैंने अपने दिल की बात सुनी और उसके अनुसार काम किया।

जब मैंने अपने खेल के करियर के दौरान समाज सेवा के काम करना शुरू किया, तब मुझे असली खुशी मिलने लगी। मुझे अपने आप में संतोष मिल रहा था कि मैं दूसरों की मदद कर सकती हूं और उनके जीवन में एक बदलाव ला सकती हूं। इसके अलावा, मुझे लगता था कि समाज सेवा करना मेरी जिंदगी का मकसद नहीं है, बल्कि इससे मुझे ज्यादा आनंद मिल रहा है।

फिर एक दिन, मेरे दिल में खुशी के इस अनुभव से भी अधिक खुशी हुई जब मैंने सोशल वर्कर बनने के बारे में सोचा। मुझे लगता था कि एक सोशल वर्कर के रूप में, मैं और भी ज्यादा लोगों की मदद कर सकूंगी और उन्हें एक बेहतर जीवन दे सकूंगी।

FAQ

Geeta Phogat कौन हैं?

उत्तर: Geeta Phogat भारतीय महिला पहलवान हैं जो कुश्ती में बड़ी उपलब्धियों को हासिल कर चुकी हैं।

Geeta Phogat ने कब अपना डेब्यू किया था?

उत्तर: Geeta Phogat ने 2009 के कमनवेल्थ युगों में अपना डेब्यू किया था।

Geeta Phogat को कुश्ती में कितनी गोल्ड मेडल मिले हैं?

उत्तर: Geeta Phogat को कुश्ती में कमनवेल्थ गेम्स 2010 में एक गोल्ड मेडल मिला था।

Geeta Phogat की जीवनी किस फिल्म पर आधारित है?

उत्तर: Geeta Phogat की जीवनी आमिर खान द्वारा निर्देशित फिल्म ‘दंगल’ पर आधारित है।

Geeta Phogat ने कुश्ती को छोड़ने का क्यों फैसला किया था?

उत्तर: Geeta Phogat ने समाज सेवा करने के लिए कुश्ती को छोड़ने का फैसला किया था।

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